कवि शिरोमणि पंडित मांगे राम जी प्रक्रति से शांत स्वभाव के व्यक्ति थे|उन्होंने अपने आपको दर्जे दो में सिर्फ"गुरु श्रद्धा" के कारण ही अपने आप को मानते थे अन्यथा वे पंडित लख्मीचंद जी से किसी भी तरह कम नही थे|
डा. पूर्णचंद शर्मा के अनुसार " भाषा की प्रांजलता,मुहावरों का प्रयोग एवम घटना-सयोंजन में तो ये अपने गुरु से भी आगे निकल गये और उनके नाम को रोशन किया|
डा.शिव प्रकाश गोयल ने इनके कला कोशल का इस प्रकार उल्लेख किया है-:"आपका क्रष्ण जन्म नामक सांग कथा सयोंजन,रस परिपाक,आदर्श स्थापना,चरित्र-चित्रण,शब्द विन्यास,संगीतात्म्कता,अलंकार योजना आदि द्र्ष्टियों से महत्वपूर्ण हैं"|
उपरोक्त विद्वानों के कथनों से कवि शिरोमणि पंडित मांगे राम का कला कोशल काफी हद तक स्पष्ट है|सम-सामयिक चित्रण,राष्ट्रीय चेतना,सामाजिक मूल्यों का चित्रण तथा गुरु महिमा व भक्ति में उनका कोई जोड़ नही है|वे अपने समय के कवि शिरोमणि थे तथा आज भी हैं|उन्होंने अपने समकालीन कवियों को समय समय पर ललकारा है---
नर्क बीच में पड़ते देखे काणी बांच करण आले |
छन्द काट के छाप धरें चुगली पांच करण आले |
ढोलक बांध्याँ फिरे भतेरे सोना कांच करण आले |
छोटे मोटयाँ की के गिनती जितने नाच करण आले |
लख्मीचंद ने छोड़ के लोगो कोए लड़ो ऐलान मेरा||१||
साभार---- पंडित मांगे राम हरियाणवी ग्रन्थावली(c)
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