साहित्य की महता की एक प्रमुख कसोटी यह होती है कि उसमें जीवन किसी सीमा तक सिमट चुका है अथवा यूँ कहें कि कवि कितनी सच्चाई और ईमानदारी के साथ अपने युगीन जीवन को व्यक्त करने में सफल हो सका है|इस सम्बन्ध में पहली बात यह है कि कवि भी पहले एक व्यक्ति होता है,बाद में कवि|इसका अर्थ यह है कि कवि जिस समाज और वातावरण के भीतर जन्म लेता है,बड़ा होता-उस समाज और वातावरण से पूरी तरह प्रभावित होता है|निसंदेह कतिपय महान कवि इससे भी एक पग आगे बढ़ जाते हैं और वे अपने युग कि दिशा को ही एक नया बोध और नया स्वर प्रदान करते हैं|इस बात से इंकार नही किया जा सकता कि ऐसे महान और युग प्रवर्तक कवि समाज से अछूते रह कर काव्य का सर्जन नही करते|उन कवियों का युगीन महत्व होता है जो अपने युग को पूरी ईमानदारी के साथ व्यक्त करते हैं|पंडित मांगे राम की गणना ऐसे ही कवियों में की जा सकती है|हरियाणा लोक नाट्य परम्परा में पंडित मांगे राम ऐसे एक मात्र कवि हैं जिन्होंने अपने युग की राजनीतिक ,सामाजिक,और धार्मिक परिस्थितियों का वर्णन पूरी निष्ठा और सचाई के साथ किया है|
पंडित मांगे राम हरियाणवी ग्रन्थावली(c)
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