Monday 13 August 2012

Kavi Shiromani Pandit Mange Ram Sangi

गुरु लख्मीचंद जी से दूर हो जाने के बाद भी पंडित मांगेराम जी के दिल में अपने गुरु के प्रति बहुत श्रद्धा देखी जा सकती है| सही मायने में पंडित मांगेराम जी को गुरु भक्ति में आधुनिक(एकलव्य) कहें तो कोई गलत बात नही होगी|
पंडित लख्मीचंद जी को स्वर्ग में गये 60-65 वर्ष के करीब हो गये हैं|परन्तु आज भी गाँव,तहसीलों,आदि जगहों में यादें ज्यों की त्यों ताज़ा है|वे आज हरियाणवी साहित्य के शेक्सपीयर,उपमाओं में कालिदास और हरियाणा सांग सम्राट की जिन विभूतियों से सजें है,इसमें पंडित मांगेराम जी का बड़ा योगदान है|कवि शिरोमणि पंडित मांगे राम जी ने पंडित लख्मीचंद जी के स्वर्ग वास के बाद भी करीब २० वर्ष तक उनके नाम को लोगों के चित से नही उतरने दिया|कवि शिरोमणि पंडित मांगे राम जी की रागनियों,भजनों में पंडित लख्मीचंद जी का स्मरण किया गया है|
उदाहरण---
गंधर्व बण के आया था म्हारा देश पसंद भी ना था|
लोग कहे वो लख्मीचंद वो लख्मीचंद भी ना था|
मांगेराम पिछाणा हमने बिना पिछाणे कुछ ना||१||

ब्रह्मा,विष्णु,शिव जी ,भोला जाण लिया जाटी के मांह|
गंगा,जमना,त्रिवेणी मने,मान लिया जाटी के मांह|
बालकपण सेवा करके ज्ञान,लिया जाटी के मांह |
दुनिया में फिरूँ था भटकता,  ध्यान लिया जाटी के मांह|
गुरु लख्मीचंद की ना में बैठ के,मैं तीस बरस ते तीर रह्या सूं||२||

और इस गुरु भक्ति का इससे बड़ा क्या उदाहरण हो सकता है----
                                  पंडित मांगे राम ग्रन्थावली(c)

साहिल कौशिक,
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