गुरु लख्मीचंद जी से दूर हो जाने के बाद भी पंडित मांगेराम जी के दिल में अपने गुरु के प्रति बहुत श्रद्धा देखी जा सकती है| सही मायने में पंडित मांगेराम जी को गुरु भक्ति में आधुनिक(एकलव्य) कहें तो कोई गलत बात नही होगी|
पंडित लख्मीचंद जी को स्वर्ग में गये 60-65 वर्ष के करीब हो गये हैं|परन्तु आज भी गाँव,तहसीलों,आदि जगहों में यादें ज्यों की त्यों ताज़ा है|वे आज हरियाणवी साहित्य के शेक्सपीयर,उपमाओं में कालिदास और हरियाणा सांग सम्राट की जिन विभूतियों से सजें है,इसमें पंडित मांगेराम जी का बड़ा योगदान है|कवि शिरोमणि पंडित मांगे राम जी ने पंडित लख्मीचंद जी के स्वर्ग वास के बाद भी करीब २० वर्ष तक उनके नाम को लोगों के चित से नही उतरने दिया|कवि शिरोमणि पंडित मांगे राम जी की रागनियों,भजनों में पंडित लख्मीचंद जी का स्मरण किया गया है|
उदाहरण---
गंधर्व बण के आया था म्हारा देश पसंद भी ना था|
लोग कहे वो लख्मीचंद वो लख्मीचंद भी ना था|
मांगेराम पिछाणा हमने बिना पिछाणे कुछ ना||१||
ब्रह्मा,विष्णु,शिव जी ,भोला जाण लिया जाटी के मांह|
गंगा,जमना,त्रिवेणी मने,मान लिया जाटी के मांह|
बालकपण सेवा करके ज्ञान,लिया जाटी के मांह |
दुनिया में फिरूँ था भटकता, ध्यान लिया जाटी के मांह|
गुरु लख्मीचंद की ना में बैठ के,मैं तीस बरस ते तीर रह्या सूं||२||
और इस गुरु भक्ति का इससे बड़ा क्या उदाहरण हो सकता है----
पंडित मांगे राम ग्रन्थावली(c)
साहिल कौशिक,
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