Friday 21 September 2012

Kavi Shiromani Pandit Mange Ram Sangi

कवि शिरोमणि पंडित मांगेराम जी की रागनियाँ ऐसी है कि जो बूढ़े-बुजर्ग आदमी है वे उनकी रागनियों की पंक्तिया आज अपनी देसी हरियाणवी भाषा में मुहावरों की तरह इस्तेमाल करने लगे है जिस में से में कुछ उदाहरण मैं(साहिल कौशिक पौत्र श्री कवि शिरोमणि पंडित मांगेराम)आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ!आशा है कि ये पंक्तिया अर्थात हरियाणवी मुहावरे आपको भी पसंद आयेंगे क्योंकि ये उनकी रागनियों में से है!
ब्याह तै हो सै बना-बनी का लोग मजे लूटे सै !
बेटी का के धन बाप के पाळी पोषी ब्याह दी !
कहै मांगेराम पार हो ज्यागा नीत राखिये हर में !
देख बिराणी चौपड़ी क्यों ललचावे जी !
गूंगे की माँ समझया करै गूंगे के इशारा नै !
भुंडे कामा धोरै लोगो मांगेराम नही सै !
राजा रुस्से नगरी ले ले,के और देश में राह कोन्या !
वहां धोबी के करै जड़े नगों का गाम !
लेणा एक ना देणे दो दिलदार बणे हांडे सै !
बीर चलत्र सुण राखे तू मर्द चलत्र कर जाणे !
बेटी बहु ठिकाणे आछी बिना ठिकाणे कुछ ना !
कहै मांगेराम पाणची तेरी कांशी हो ज्यागी !
जुनसी मांगेराम कह दे  लोगो सौल़ा आने साची होगी !
इब तेरे कैसे लख्मीचंद हजार बणे हांडे सै !
जड़े भुत तिसाये मरया करैं थे बागड़ में गंडे चूसा दिए !
सबके बसका गाणा कोन्या यो मरग्या देश राम्भ कै !
 साँगी भजनी फिरै गावते इसी कविताई में सौ ल्या दयूं !

धन्यवाद,
साहिल कौशिक,
दूरभाष:+919813610612




Saturday 1 September 2012

Kavi Shirmani Pandit Mange Ram Sangi

कवि शिरोमणि पंडित मांगे राम जी को पहले ही पता था कि कलयुग में क्या किस तरह सभी देवताओं  को भूलकर पैसे,रूपये को जोड़ने के लिए लोग क्या क्या करने को तैयार हो जायेंगे|  और लडकियों का शोषण भी गलत होगा|
तो देखिये पंडित मांगे राम जी ने क्या लिख दिया और कितनी सच्चाई है-
महाभारत के बाद भुल्ग्ये बात मुरारी की|
पैसे के म्ह मोहब्बत रहगी दुनिया दारी  की||टेक||


लोग दिखावा वेद पढ़ें और गळ माला घल री|
भगमा बाणा चेली राखें किसी आजादी मिल री|
मंदिर के म्ह चोंडे खुल  री,पोल पुजारी की||१||
पैसे के म्ह मोहब्बत रहगी दुनिया दारी  की||टेक||

दो पैसे के उपर दुनिया चोडें  जल ठालें|
पांच बरस  की छोरी  ने ये  बूढ़े के  संग ब्याह्लें |
हड्डी हड्डी  बेंच के खालें,कन्या क्वांरी की||२||
पैसे के म्ह मोहब्बत रहगी दुनिया दारी  की||टेक||

सारी हांणा काम बदी के,कदे नही  नेकी |
पीं पीं पीं बाजा राखें एक ढोलक ल्या टेकी|
अपणी आंख्या हम नै देखि ठगी प्रचारी की||३||
पैसे के म्ह मोहब्बत रहगी दुनिया सारी की||टेक||

मांगेराम गुरु की सेवा सुबहो-शाम  करे|
सोच समझ कै चालें ज्या तेरी भली भगवान करें|
जिसा पुगै उसा दान करे भक्ति घरबारी की||४||
पैसे के म्ह मोहब्बत रहगी दुनिया सारी की||टेक||




Sahil Kaushik,
+919813610612
email:Sahilkshk6@gmail.com













Kavi Shiromani Pandit Mange Ram Sangi

क्रमश: जारी
             घर से जाने के बाद पंडित मांगे राम जी ने अपनी गाड़ियों का काम-धंधा बिल्कुल बंद कर दिया|घेर में खड़ी उनकी गाडी में जानवरों ने अपना बसेरा बना लिया|वे पंडित लख्मीचंद जी के उपासक बन गये थे|फिर एक दिन पंडित मांगेराम जी ने पंडित लख्मीचंद जी को अपना गुरु धारण कर लिया|उस समय पंडित लख्मीचंद जी का सांग का बेड़ा धर्राट कर रहा था|
             पंडित मांगेराम जी भी अपने समकालीन कलाकारों से आगे बढ़ गये थे|उनका एक तो शरीर का रौब,फिर बुद्धि का कमाल|उनकी छन्द रचना बड़ी ही कसी हुई होती थी|पर अपने को गुरु लख्मीचंद जी के आगे कुछ नही समझते थे|सांगो में रह कर वे और भी बहुत कुछ जान गये थे|पंडित लख्मीचंद छन्द जी के बेड़े में उनके साथ पंडित माईचंद,पंडित चन्दन मनाणा आदि समकालीन कलाकार थे|जो मंच पर रागनी भी गाते थे और जनाना पार्ट भी किया करते थे|स्वयं पंडित लख्मीचंद जी भी कई सांगो में जनाना पार्ट करते थे(लख्मीचंद माळी की बण कै बांध्या करता साड़ी)|
            पंडित मांगे राम जी का कहना था कि,"सांगियाँ की जात इसी होवे है जिसा कुते का व्यवहार होवे है"|वो आपस में एक दुसरे को काटने पर आमदा रहते हैं|इस प्रकार के सांगी भी होते हैं|वे सभी ईर्ष्यालु स्वभाव के,एक दुसरे की टांग खीचने वाले थे|पंडित मांगेराम जी के सांग में गुणों के कारन जन-मानस में तो आदर बढ़ गया|परन्तु सांग बेड़े में पंडित मांगेराम जी का वर्चस्व बढने के कारण कलाकार जो कि पंडित लख्मीचंद के बेड़े में थे|वे सब जलने लगे तथा गुरु लख्मीचंद जी के भी कान भरने लगे|पंडित लख्मीचंद जी सुरापान तो करते ही थे,उनको गुस्सा जल्दी आ जाता था|गुरु जी के शिष्यों में से किसी एक ने पंडित लख्मीचंद जी से कहा कि मांगेराम जी से सांग में जनाना पार्ट भी करवाओ,क्योंकि पंडित मांगेराम जी ने अब तक मर्दाना पार्ट ही किया था||
             एक दिन जब गुरु लख्मीचंद जी ने ज्यादा शराब पी रखी थी|जो वे अक्सर पीते थे |जनाना पार्ट करने का,पंडित मांगेराम जी को जोर देकर कहा परन्तु पंडित मांगेराम जी ने इंकार कर दिया|पंडित लख्मीचंद जी को गुस्सा आ गया|वे कहने लगे,"गुरु का कहना नही मानता"|पंडित मांगेराम जी ने कहा,"गुरु जी मैं आपकी मन-आत्मा से इज्जत करता हूँ|आपकी मैंने सारी बात मानी हैं|परन्तु सांग में सबसे ज्यादा आपके कलाकारों द्वारा मेरे प्रति ही व्यवहार अच्छा नही होता"|पंडित लख्मीचंद जी का गुस्सा सातवें आसमान पर था|वे कहने लगे,"तू मेरे बड़े ते चल्या जा फैर कदे मत आइये"|स्वाभिमानी पंडित मांगेराम की आत्मा पर ठेस लगी|उन्होंने उसी रोज सांग में से निकल जाने का मन बना लिया|जब वे मन करड़ा करके निकलने लगे,तो भावुक होकर अपने गुरु के चरण स्पर्श करने लगे तो पंडित लख्मीचंद जी ने मना कर दिया|वे चौपाल से निकलने लगे थे कि पंडित लख्मीचंद ने उनको वापिस बुलाया तो पंडित मांगेराम जी ने सोचा कि शायद गुरु जी का मन बदल गया होगा|तो पंडित मांगेराम जी वापस आये तो लख्मीचंद जी बोले,"सुण मेरी बात,आज के बाद तू कदे भी मेरी रागनी नही गावैगा|इब चाल्या जा आड़े तै"|तो पंडित मांगे राम जी ने जातेजाते अपने गुरु जी से कहा कि,"गुरु जी मैं कदे भी आपकी रागणी नही गाऊंगा पर जो मेरे दिल में आपके प्रति भक्ति भावना है उसे मैं प्रदर्शित जरुर कहूँगा और ये कहकर पंडित मांगेराम जी वहां से चले गये|
स्वाभिमानी पंडित मांगेराम जी का मन बहुत उदास हो गया था|परन्तु एक द्रढ़ निश्चय भी कर लिया था कि गुरु जी को उनके जीते जी कुछ बन कर दिखाऊंगा|और इस तरह वे अपने गुरु लख्मीचंद जी  से दूर हो गये|

लेखक-नवरत्त्न शर्मा सुपुत्र श्री कवि शिरोमणि पंडित मांगेराम सांगी 
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