Saturday 18 August 2012

Kavi Shiromani Pandit Mange Ram Sangi

कवि शिरोमणि पंडित मांगे राम सांगी हरियाणा ही नही अपितु उ.प्र.,राजस्थान अर्थात जहां भी हिंदी बोली जाती थी|उनकी रागनियों को लोक जीवन में बहुत पसंद किया जाता था|चाहे उनके सांग पिंगला-भरतरी,क्रष्ण-जन्म,खांडेराव परी,जयमल-फता,नोरतन,क्रष्ण-सुदामा,धुर्व भगत,भगत सिंह,लैला-मजनू,हीर-राँझा या अन्य|जब कहीं भी किसी गाँव में उनका सांग होता तो  तो ग्रामवासी जैसे कोई  पर्व,मेला हो ऐसा महसूस करता था|बड़ी ख़ुशी महसूस करते|सारा गाँव एक मत होकर उनका स्वागत करता|आम जन की  कवि शिरोमणि पंडित मांगे राम सांगी जी से सबसे पहले अपने प्रिया दादा सांगी से मिलने की होड़ में रहते थे|जब  दोपहर बाद सांग कथानक शुरू होता तो वे सबसे बाद में,सांग स्थल पर  जाते और सारे कलाकार पंडित जी के बेड़े(पार्टी)अपनी अपनी रागनी गाकर सांग कथानक शुरू करते थे|पंडित मांगेराम जी की शुरुआत से ही सुनने वाले,जिनमे बच्चे,बूढ़े,युवा और माताएँ,बहु,बेटियां  अपने ढाठे मारकर(ओढ़नी का एक तरीका जिस में केवल आँखें ही दिखती हैं)सांग को मन्त्र-मुग्ध होकर देखते/देखती थी|जब तक सांग ka समापन नही होता वे सभी  वहीं स्थल पर बैठे रहते|यह सब उनके प्रति आकर्षण था|कथानक व उनके बेजोड़ अभिनय पर आसक्त रहते थे|यह सब द्रश्य मैंने बचपन में देखे थे|वह आज भी मेरे मन को झकझोर देते हैं|में आज ६० वर्ष का हो चुका हूँ|पर मन में उनकी याद ताज़ा हैं|पिताजी ने कह भी रखा है-
                                               मांगेराम जब सांग करे शेर की ढाल छिड़े सै||
                                                                                                                                     पंडित मांगे राम जी के ज्येष्ठ पुत्र नवरतन शर्मा,

Sahil Kaushik,
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