Sunday 14 October 2012

Shiromani Kavi Pandit Mange Ram Sangi

शिरोमणि कवि पंडित मांगेराम द्वारा रचित सांग "वीर विक्रमा जीत"में से ये रागनी ली गयी है !हंस बतलाते है कि महाराज हम आपकी बड़ाई करे वगैर रह नही सके!जब आपकी तारीफ़ करते जा रहे थे तो इंद्र महाराज नाराज हो गये और हमारी  हंसणी छीन ली तथा कहा कि अपने बिश्वेबीस से कहो कि तुम्हारी हंसणी छुड़ा ले जायेगा !राजा वीर विक्रमा जीत कहतें है कि तुम यहीं ठहरो और मैं हंसणी छुड़ाने के लिए जाता हूँ और क्या कहते है तथा पंडित जी ने क्या दर्शा दिया -(वास्तव में ये रागनी हम पंडित मांगेराम जी के लिए मानते हैं क्योंकि इस रागनी से उनके द्वारा किये हुए कार्य  प्रदर्शित होते हैं!उनका व्यवहार ऐसा ही था और हमेशा नेक काम में वे आगे रहते थे और दादाजी ने कहा भी है-

                                                   भुंडे कामां धोरै लोगो मांगेराम नही सै
                                                           साहिल कौशिक पौत्र श्री पंडित मांगेराम
कह कै उल्टा नहीं फिरूंगा,सदा आगे नै कदम धरुंगा !
गैरां के दुःख दूर करूंगा,जीऊंगा इतनै !!टेक!!
चाहे कोए मिलियो मूढ़ अनाड़ी !
उसकी भी सोचूं ना बात उगाड़ी !
पतली माड़ी मोटी द्यूंगा,काम्बल  एक लंगोटी द्यूंगा,
भूख्या ने दो रोटी द्यूंगा,जीऊंगा इतनै!!1!!
गैरां के दुःख दूर करूंगा,जीऊंगा इतनै !!टेक!!
तुम हंस बणे बिना पर के !
बिगड़ी म्ह कौण गैर कौण घर के !
हर के गुण नै गाया करूंगा,हरिद्वार,गढ़ जाया करूंगा,
गँगा जी म्ह नहाया करूंगा,जीऊंगा इतनै !!2!!
गैरां के दुःख दूर करूंगा,जीऊंगा इतनै !!टेक!!
धर्म की ठा राखी शमशीर !
सत की या खेंची एक लकीर !
गैर बीर का भाती हूँगा,ठाडे का ना साथी हूँगा,
हिणे का हिमाती हूँगा,जीऊंगा इतनै !!3!!
गैरां के दुःख दूर करूंगा,जीऊंगा इतनै !!टेक!!
तुमने देख हुआ घणा प्रसन्न !
लग्या आँखों तै पाणी बरसण !
मैं क्रष्ण कैसा नृत करूंगा,मन की सोची शर्त करूंगा,
पणवासी का व्रत करूंगा,जीऊंगा इतनै !!4!!
गैरां के दुःख दूर करूंगा,जीऊंगा इतनै !!टेक!!
मांगेराम आत्मा नै मारूं !
सदा आगे की बात बिचारुं !
सुल्फे,दारुं में झूलूं ना,खाकै  फीम घणा टुलूं ना,
गुरु लखमीचंद का गुण भूलूं ना,जीऊंगा इतनै!!5!!
गैरां के दुःख दूर करूंगा,जीऊंगा इतनै !!टेक!!

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Sahil Kaushik Grandson of PANDIT MANGERAM,
Mob:+918607444910
email:shiromanikavipanditmangeram@gmail.com

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