शिरोमणि कवि पंडित मांगेराम द्वारा रचित साँग "ध्रुव का जन्म(ध्रुव भक्त)"में से ये रागनी ली गयी है!
वार्ता:जब नारद जी रानी सुनीति को कहते हैं कि आपकी वंश बेल तब चलेगी जब आप अपने पति की दूसरी शादी करवाओ !इतना कहकर नारद जी महल से चले जाते हैं!तो रानी सुनीति राजा उतानपाद से कहती हैं कि आप दूसरी शादी करवा लो तभी हमारी वंश बेल चलेगी पर राजा उतानपाद मना कर देते हैं तो रानी उन्हें कहती है और पंडित मांगेराम जी ने लिख दिया --------------
नारद के बोल मेरे हृदय समाए हो !!टेक!!
मेरे कहे तै ब्याह करवाले तन की कली खिलैगी !
जब म्हारे अगत बेल चलेगी,माया मिलैगी,
होंज्या मन के चाहे हो !!1!!
नारद के बोल मेरे हृदय समाए हो !!टेक!!
बीर मर्द का मेल बण्या रहै धूर के साथ इसे हों !
त्रिलोकी के नाथ इसे हों,हाथ इसे हों,
जिन तै बाग लुआए हों !!2!!
नारद के बोल मेरे हृदय समाए हो !!टेक!!
कदे भी ना झूठी जा इन म्हं-ऋषियों की बाणी !
तूं राजा मैं राणी,म्हारी उमर पुराणी,
हम सां खाए कुमाए हो !!3!!
नारद के बोल मेरे हृदय समाए हो !!टेक!!
बेटे बिन मुक्ति ना मिलती चाहे लाख बर्ष तक जी ले !
गुरु लख्मीचंद के छन्द रसीले,गडरे सै कील्ले .
कोन्या हिलते हीलाए हो !!4!!
नारद के बोल मेरे हृदय समाए हो !!टेक!!
इस रागनी में पंडित मांगेराम जी ने अपने गुरु का ही नाम लिया है !
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