ये भारत के हिंदी भाषी प्रान्तों के लोक साहित्य के महान कवि थे|पंडित मांगे राम जी बचपन से ही समाज सेवा व समाज कार्यों में रूचि रखते थे और उनकी ये रूचि आजीवन बनी रही|इस महान लोक नाट्यकार,लोक धारा कवि और अभिनेता का गढ़ गंगा पर गंगा के किनारे प्रभु का नाम लेते हुए २६ नवम्बर १९६७ में इस नश्वर संसार को त्याग कर प्रभु चरणों में लीन हो गये|
Sunday, 14 October 2012
Shiromani Kavi Pandit Mange Ram Sangi
शिरोमणि कवि पंडित मांगेराम जी द्वारा रचित सांगीत "ध्रुव भगत"में से ये रागनी ली गयी है !
जब राजा उतानपाद की दूसरी शादी हो जाती है तो राजा अपनी रानियों को (जो कि दोनों बहने थी )लड़ते हुए देख कर क्या कहने लगते है और पंडित जी ने लिख दिया- फाँसी भी आच्छी,सूली भी आच्छी ! घर म्हं ना आच्छी लुगाई दो !!टेक!!
खसम करें जा चौकीदारा गेल सिपाही दो ! कान पकड़ कै मुल्जिम करले ! डंडे बजावैं,करदे सिर पै पिटाई दो !!१!! घर म्हं ना आच्छी लुगाई दो !!टेक!!
ये माणस नै पार तारदे शर्म सच्चाई दो ! चौबीस घण्टे खांडा बाजै, टूक खाण दे कोन्या,घर म्हं जमाई दो !!२!! घर म्हं ना आच्छी लुगाई दो !!टेक!!
बुढे बारै ब्याह करवावै मिलै बुराई दो ! घर के अंदर हत्था बणज्या, गरीब गऊ के सिर पै चढज्यां,कसाई दो !!३!! घर म्हं ना आच्छी लुगाई दो !!टेक!!
इसी ए सूली इसी ए फाँसी ब्याह सगाई दो ! मांगेराम दूध की जड़ म्हं सारा, खिडांदे बड़ज्या घर म्हं,बिलाई दो !!४!!
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