कैसे चाल पिछाणी जागी इस रंगदार जमाने की।।टेक।।
गंगा जी पे चोरी करते जमना जी पे गावे गीत।
वेद-शास्त्र सुणते कोन्या दुनिया की बदलगी रीत।
रिश्तेदार-यारी छुटी पैसे के माह रही प्रीत।
कलयुग तो यु नुए बीतेगा सहम बेचारी दुनिया रोती।
अड़बंद के साड़े बांधे थे तहमद बांधे दोहरी धोती।
ऋषि-महात्मा राख्या करते साथ म्ह संध्या की पोथी।
जो आज बिकती दो दो आने की।।1।।
कैसे चाल पिछाणी जागी इस रंगदार जमाने की।।टेक।।
भाई ने भाई चहाता ना बेटे ने चहाता बाप।
बीर-मर्द रहे दोनों घर म्ह दोनुवा के मन म्ह पाप।
किसे का भी दोष नही वे दुश्मन बण के बेठे आप।
तू मेरे म्ह,मैं तेरे म्ह 100-100 ऐब क्डावन लागगे।
न्याय-नीति इंसाफ रह्या ना गंगा पाहड चडावण लाग्गे।
जग परले म्ह कसर कड़े जब शुद्र वेद पडावन लागगे।
या इज्जत ठोले पाने की।।2।।
कैसे चाल पिछाणी जागी इस रंगदार जमाने की।।टेक।।
घर-घर म्ह हिमाती होगे हिमात्या का ओड रह्या ना।
घर-घर म्ह बाराती होगे बारता का ओड रह्या ना।
घर-घर म्ह पंचायती होगे पंचेता का ओड रह्या ना।
कष्ट की कमाई लोगो खांड कैसी काची होगी।
भटियारी की रांधी होई कदे भी ना काची होगी।
जुणसी मांगेराम कहदे सोला आने साची होगी।
या खोटी मार निशाने की।।3।।
कैसे चाल पिछाणी जागी इस रंगदार जमाने की।।टेक।।
कैसे चाल पिछाणी जागी इस रंगदार जमाने की।।टेक।।
\लेखक-पंडित मांगेराम सांगी पान्ची वाले।
साहिल कौशिक,
मोब-+919813610612
ईमेल-sahilkshk6@gmail.com
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