ये भारत के हिंदी भाषी प्रान्तों के लोक साहित्य के महान कवि थे|पंडित मांगे राम जी बचपन से ही समाज सेवा व समाज कार्यों में रूचि रखते थे और उनकी ये रूचि आजीवन बनी रही|इस महान लोक नाट्यकार,लोक धारा कवि और अभिनेता का गढ़ गंगा पर गंगा के किनारे प्रभु का नाम लेते हुए २६ नवम्बर १९६७ में इस नश्वर संसार को त्याग कर प्रभु चरणों में लीन हो गये|
Friday, 23 November 2012
Shiromani Kavi Pandit Mange Ram Sangi
बहुत जल्द पंडित मांगेराम जी की जीवनी जो थोड़े और रोचक पंक्तियों में आपके सामने ला रहा हूँ !मैं आशा करता हूँ आप भी उसे पसंद करोगे !
धन्यवाद !
साहिल शर्मा पौत्र श्री शिरोमणि कवि पंडित मांगेराम जी
पंडित मांगेराम जी से जुड़ी किसी भी जानकारी के लिए आप इस नम्बर पर सम्पर्क कर सकते हो
+919813610612
Very soon a short and interesting biography of Pandit ji Mangeram'm bringing in rows in front of you, I hope you'll like it too!
Thank you!
Sahil Sharma grandson of Shiromani Kavi Pandit Mange Ram
Pandit Mangeram ji attached to any information you can contact us on the number
+919813610612
Thursday, 15 November 2012
Shiromani Kavi Pandit Mange Ram Sangi
शिरोमणि कवि पंडित मांगेराम जी द्वारा रचित भेंट ............
तेरे भवन म्ह खड़े पुजारी,खड़े पुजारी,री,री,री,री ज्वाला री,
री,री ज्वाला री,मेरे मन म्ह,मन म्ह,मेरे मन म्ह बसी है तू !!टेक!!
दुर्गे,ब्रिजिया,काली,विजिया नाम गिणाऊं तेरे,
कमोढ़ा,चंडिका,क्रष्णा महादेवी जगह-जगह पै डेरे,
सदा शेर की तेरी सवारी,तेरी सवारी,री,री,री,री ज्वाला री !!1!!
री,री ज्वाला री,मेरे मन म्ह,मन म्ह,मेरे मन म्ह बसी है तू !!टेक!!
ब्रहमा,विष्णु,शिवजी रच दिए जगमग जोत सवाई,
चार वेद तनै साकसी कहते सृष्टि तनै रचाई,
रचा दी तनै दुनिया सारी,दुनिया सारी री,री,री,री ज्वाला री !!2!!
री,री ज्वाला री,मेरे मन म्ह,मन म्ह,मेरे मन म्ह बसी है तू !!टेक!!
भामासुर अभिमानी राजा कोन्या रोकी कफल जड़े,
कफल तोड़ कै कैद छुटाली देखैं थे सब लोग खड़े,
बड़ी किले म्ह दे किलकारी,दे किलकारी री,री,री,री ज्वाला री !!3!!
री,री ज्वाला री,मेरे मन म्ह,मन म्ह,मेरे मन म्ह बसी है तू !!टेक!!
मवासीनाथ,मानसिंह भी तेरे शरण म्ह खड़े रहे,
मांगेराम गुरु लख्मीचंद तेरे चरण म्ह पड़े रहे,
ज्ञान के कारण बणे भिखारी,बणे भिखारी री,री,री,री ज्वाला री !!4!!
री,री ज्वाला री,मेरे मन म्ह,मन म्ह,मेरे मन म्ह बसी है तू !!टेक!!
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Shiromani Kavi Pandit Mange Ram Sangi
शिरोमणि कवि पंडित मांगेराम द्वारा रचित सांग :क्रष्ण-सुदामा"नामक सांग में से ये रागनी ली गयी है
के हुया करै कंगाल कै,के मैं ल्यावण जोग्गा सूं !!टेक!!
क्यूं बातां की करै सफाई,
क्रष्ण लाग्या करण अंघाई,
भाई तू छिकरया सै धनमाल तै,के मैं ठावण जोग्गा सूं !!1!!
के हुया करै कंगाल कै,के मैं ल्यावण जोग्गा सूं !!टेक!!
हम छ:माणस विप्त भरैं,
बतादे जतन कौनसा करैं,
चाहें घरां देखले चाल कै,के मैं आवण जोग्गा सूं !!2!!
के हुया करै कंगाल कै,के मैं ल्यावण जोग्गा सूं !!टेक!!
मैं भूखा मरता कुटुंब समेत,
कुछ कर मेरे बालाकां का चेत,
मेरे रेत लाग् रया खाल कै,भाई मैं ताह्वण जोग्गा सूं !!3!!
के हुया करै कंगाल कै,के मैं ल्यावण जोग्गा सूं !!टेक!!
लख्मीचंद भज रहे हरि,
मांगेराम कै पक्की जरी,
दुनिया भरी सुरताल कै,के मैं गावण जोग्गा सूं !!4!!
के हुया करै कंगाल कै,के मैं ल्यावण जोग्गा सूं !!टेक!!
Sunday, 11 November 2012
Shiromani Kavi Pandit Mange Ram Sangi
शिरोमणि कवि पंडित मांगेराम द्वारा रचित सांग :क्रष्ण-सुदामा"नामक सांग में से ये रागनी ली गयी है !
पांच,सात,दस,बीस म्ह गेड़ा मारिए !
भाभी नै दिए राम-राम,बच्चों नै पुचकारिये !!टेक!!
जो कुछ मेरे घर म्ह सै सब भीतर बाहर तेरा !
त्रिलोकी का नाथ करेगा बेड़ा पार तेरा !
मैं बालकपण का यार तेरा,मत दिल तै तारिये !!1!!
भाभी नै दिए राम-राम,बच्चों नै पुचकारिये !!टेक!!
प्यारे मिलैं उजाड़ म्ह जब पेटे भरया करैं !
सत पुरुषां की नाव भवंर तै आपे तिरया करैं !
त्रिलोकी के नाथ करया करैं,बख्त बिचारिये !!2!!
भाभी नै दिए राम-राम,बच्चों नै पुचकारिये !!टेक!!
तीन रोज तक रंग महल म्ह खूब करे ठठ्ठे !
महादेव नै बेटे तेरै चार दिए कट्ठे !
कुर्ता टोपी और दुपट्ट,खूब सिंगारिये !!3!!
भाभी नै दिए राम-राम,बच्चों नै पुचकारिये !!टेक!!
कहै मांगेराम इस दुनिया म्ह खोट्टा घरवासा !
24 घण्टे फ़िक्र करें जा आनन्द ना माशा !
काम,क्रोध,मद,लोभ की आशा,तू मतन्या धारिये !!4!!
भाभी नै दिए राम-राम,बच्चों नै पुचकारिये !!टेक!!
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Monday, 5 November 2012
Shiromani Kavi Pandit Mange Ram Sangi
शिरोमणि कवि पंडित मांगेराम द्वारा रचित सांग "क्रष्ण-सुदामा"में से ये रागनी ली गयी है !
कौण कड़े का कौण सै तेरा बालकपण का यार !
मनैं राम की सूहं क्रष्ण मुरार !!टेक!!
देख-देख गई दहल मैं !
म्हारे बालक डर ज्यां महल म्ह !
इसनै करदे घर तै बाहर !!1!!
मनैं राम की सूहं क्रष्ण मुरार !!टेक!!
ना तेरे चरण का दास सै !
य़ू बामण कोन्या नाश सै !
इसनै करया होली कोड त्यौहार !!2!!
मनैं राम की सूहं क्रष्ण मुरार !!टेक!!
वस्त्र हीन सभा का चोर सै !
इसकै कांधे लुटिया डोर सै !
किसी पागल-सी उनिहार !!3!!
मनैं राम की सूहं क्रष्ण मुरार !!टेक!!
मानसिंह भज राम नै !
गुरु लख्मीचंद के सामने,
यो मांगेराम गवार !!4!!
मनैं राम की सूहं क्रष्ण मुरार !!टेक!!
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Saturday, 3 November 2012
Shiromani Kavi Pandit Mange Ram Sangi
शिरोमणि कवि पंडित मांगेराम जी का व्यक्तित्व
पंडित मांगेराम जी बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न कवि थे !वे लोक कवि शिरोमणि अपितु राष्ट्रीय-प्रेम की भावना से ओत-प्रोत,लोक कल्याण की भावना से सराबोर सदवृतियों में सलिंप्त-स्वस्थ आदर्शवादी समाज के पक्षधर हष्ट-पुष्ट शरीर के मालिक,छ: फुट चार इंच कद और गौरवर्ण,शरीर दर्शन से दार्शनिक,मस्तिष्क चिंतन से ज्ञानी,ह्रदय से सवेंदनशील तथा सांसारिक द्रष्टि से मस्तमौला व्यक्तित्व के स्वामी थे !
वे स्वभाव से नर्म,मूढ़ के सम्मुख कठोर,बच्चों के संग बच्चे,जवानों के संग जवान,व्रद्धों के संग वृद्ध और पंचो में पंचायती थे ! सिर पर तुर्रेदार कुल्ले वाला साफा,धोती-कुर्ता,जॉकेट तथा कभी-कभी बंद गले का कोट और उस पर सुसज्जित पिस्तौल उन के व्यक्तित्व को चार चाँद लगाता था !
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